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Wednesday 24 April 2013

प्रदूषण

प्रदूषण

आज के विकसित, आधुनिक युग में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। मनुष्य, पशु-पक्षी, वनस्पतियाँ, सभी इस से प्रभावित हो रहे हैं। यहाँ तक कि ॠतुओं पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। विश्व के लिये प्रदूषण एक गंभीर समस्या का विषय बना हुआ है। विभिन्न देशों के वैज्ञानिक इस समस्या के समाधान ढ़ूँडने के लिये अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं।

प्रदूषण चाहें वायु का हो या जल का, दोनों ही घातक हैं। विज्ञान के विकास के साथ बिजली की बढ़ोतरी हुई। बिजली के लिये पावरहाउसों की संख्या बढ़ी। व्यापार के लिये कल-कारखाने बढ़े, जिनकी चिमनियों से निकलने वाले धूँए ने वातावरण को प्रदूषित किया। घर में चलने वाले विद्युत यत्रों तथा वातनुकूलित यंत्रों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों के कारण भी वातावरण प्राभावित हो रहा है। बड़े-बड़े व्यापारिक शहरों में प्रदूषण का स्तर और भी बढ़ता जा रहा है। इन शहरों में गाड़ियों, बसों और ट्रकों की संख्या अधिक है। पेट्रोल और डीज़ल से उतपन्न धूँए से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिये, भारत में सी.एन.जी. का प्रयोग भी किया जा रहा है।

हमारे वन प्रकृति की धरोहर हैं। पेड़-पौधे वायु को शुद्ध करने में हमारी सहायता करते हैं। वन के पेड़ कटते जा रहे हैं और मनुष्य प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। इन सब का असर मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और नए-नए रोग उतपन्न हो रहे हैं। प्रदूषण को रोकने का प्रयास वैज्ञानिक तो कर ही रहे हैं परंतु हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह प्रदूषण को रोकने का पूरा प्रयत्न करे।

जल प्रदूषण -
अनौपचारित मलजल और औद्योगिक कचरा अमेरिका की न्यू रिवर कैलिफोर्निया में बहता हुआ
जल प्रदूषण, से अभिप्राय जल निकायों जैसे कि, झीलों, नदियों, समुद्रों और भूजल के पानी के संदूषित होने से है। जल प्रदूषण, इन जल निकायों के पादपों और जीवों को प्रभावित करता है, और सर्वदा यह प्रभाव न सिर्फ इन जीवों या पादपों के लिए अपितु संपूर्ण जैविक तंत्र के लिए विनाशकारी होता है।
जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुये प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल धारायों में विसर्जित कर दिया जाना है।

कारण क्या है
पिछले 60 वर्षों से खेती में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। सन् 1950-51 0.05 मिलियन टन के उपयोग से बढ़कर सत्र 2004-05 में इनकी खपत 1.84 करोड़ टन हो गई जो कि सत्र 2008-09 में बढ़कर 2.30 करोड़ टन एनपीके एवं 70 लाख टन डीएपी की खपत होने की उम्मीद है। वर्तमान में देश में औसतन 96.4 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से रासायनिक उर्वरकों की खपत हो रही है। जबकि पंजाब में इस राष्ट्रीय औसत का दुगने से भी ज्यादा 197 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जा रहा है। पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में इसकी खपत 164 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। इसी प्रकार उप्र, गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों में भी इन उर्वरकों की अच्छी खासी खपत है। जबकि पूर्वोत्तर के राज्यों में यह खपत 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भी कम है। आंकड़ों के हिसाब से रासायनिक उर्वरकों की खपत पंजाब में सर्वाधिक है। सस्ता यूरिया हमारे लिए अब भस्मासुर ही सिद्ध हो रहा है। बढ़ते यूरिया के उपयोग ने खेतों में पानी की मांग को बढ़ा कर भूजल स्तर को काफी नीचे कर दिया है। यूरिया जैसे नाइट्रोजन युक्त उर्वरक ग्रीन हाउस गैसों के मुख्य स्रोत हैं। इससे उत्सर्जित नाइट्रस ऑक्साइड गैस काबर्न डाय ऑक्साइड की तुलना में 296 गुनी ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम हैं। नाइट्रस ऑक्साइड गैस तेजाबी बारिश की प्रमुख स्रोत हैं। यह वर्षा के जल में घुलकर नाइट्रिक अम्ल बनाती है। यूरिया मिट्टी में घुलकर नाइटे्रट स्वरूप में भी परिवर्तित हो जाता है जो कि भूगर्भ में जाकर भूगर्भीय जल को भी प्रदूषित कर रहा है। पंजाब में कैंसर रोगियों की वृद्धि में इस बात को पुष्ट करती है।

एक साल बाद सरकार ने कुछ एनजीओ को 5 फीसदी रकम तो दे दी लेकिन इस दिशा में काम महज कागजी ही हुआ। एक वर्ष बाद एग्रीमेंट भी खत्म हो गया। अब न तो एनजीओ काम कर रहे हैं और न सरकार ने कोई सुध ली। योजना के तहत विभाग को प्रदूषित पानी को लेकर ग्रामीणों को जागरूक भी करना था कि वे जहरीला हो चुका भू-जल न पींए। लेकिन एक साल हो गया कोई सरकारी अफसर ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए कभी किसी गांव में नहीं गया।

परिवहन और रासायनिक प्रतिक्रियाओं का जल प्रदूषक पर असर -
ज़्यादातर जल प्रदूषण नदियों द्वारा महासागरों मैं गिरने की वजह से होता है विश्व के कुछ क्षेत्रों में प्रभाव का पता लगाया जा सकता है सौ मील की दूरी से मुंह का प्रयोग करते हुए अध्ययन के द्वारा जलविज्ञान मॉडल परिवहन का इस्तमाल करते हुए (hydrology transport model)s.उन्नत कंप्यूटर मॉडल (computer model)जैसे की स डब्लू ऍम ऍम (SWMM) या डी एस एस ऐ ऍम मॉडल (DSSAM Model)यह इस्तेमाल किये गए हैं और जलीय प्रणाली पर प्रदूषक का क्या असर पड़ता उसका पता लगाया जा सके , उदाहरण के लिए . (filter feeding) प्रदूषण का भाग्य जानने के लिए फिल्टर भोजन (copepods) कोपेपोड्स जैसी प्रजातियों का भी (New York Bight) अध्ययन किया गया है यह उच्चतम विष (toxin)सीधे हडसन नदी के मुंह में नही आता हडसन नदीहै , लेकिन १०० किलोमीटर दक्षिण में है , क्योंकि प्लेकटॉन ऊतक होने मैं कए दिन (plankton)लग जाते हैं क्रोलिस बल के कारन (coriolis force).हडसन उन्मोचन दक्षिण तट के साथ बहेता हैं इसके अलावा दक्षिण मेंऑक्सीजन रिकतीकरण के शेत्र (oxygen depletion), रसायनों का उपयोग करने के कारण और ऑक्सीजन शैवाल फूल (algae bloom)s , के कारण अतिरिक्त पोषक (nutrient)से algal कोशिका मृत्यु विघटन होता रहेता है मछली औरसीपदार मचली के (shellfish)मरने की ख़बर बताई गयी हैं यह इस लिये है क्यूँ की विषैले तत्व फूद्चैन मैं चढ़ कर छोटी मछलीकोपेपोड्स (copepods),और फ़िर बड़ी मछली छोटी मछली को खाकर इस तरह विषैले तत्व फूद्चैन मैं चलता रहेता है और वैशाली तत्व एक से दूसरे के अनादर जाता रहेता है लगातार फ़ूड चैन मैं प्रदूषण हर कदम के द्वारा एकाग्रित होता रहेता है ,जैसे की भारी धातू (heavy metals) (उदहारण के लिए :पारा (mercury))और कार्बनिक प्रदूषक जो लगातार फैलता रहेता हैं (persistent organic pollutants)जैसे की डीडीटी (DDT)यह बायोमाग्निफिकाशन के नाम से जाना जाता है जो कभी कभी अदल बदल कर के बायोअक्कुमुलतिओन से भी इस्तेमाल हो सकता है
हालांकि प्राकृतिक फेनोमेना जैसे की ज्वालामुखी , शैवाल फूल (algae bloom),तुफान (storm), और भूकंप से जल की गुणवता मैं भारी बदलाव आजाते हैं ,जल जभी प्रदूषित होता है जब (water quality) अन्थ्रोपोगेनिक संदूषण अपंग हो जाते हैं और वह मानव के इस्तेमाल (जैसे पीने के पानी ) के लिये उपयोगी नही रहेता या उसमें ऐसा बदलाव होता है की उसमें अपने जैविक समुदायों को समर्थन देने की क्षमता नही रहेती जल प्रदूषण के कई कारण और अभिलक्षण हैं जल प्रदूषण के मूल कारण अक्सर उनके प्राथमिक स्रोत से आधारित हैं स्थल-स्रोत प्रदूषण यह आशय देता है कि संदूषक जलामार्ग के माध्यम से एक असतत " बिंदु स्रोत " मैं प्रवेश करतें है इस श्रेणी में शामिल हैं अपशिष्ट उपचार संयंत्र , फैक्टरी से ओउत्फल्ल्स स्राव भूमिगत टैंक , आदि. दूसरी प्राथमिक श्रेणी जो , गैर सूत्री स्रोत प्रदूषण को , दूषण से आशय यह देता है कि , जैसा कि इसके नाम से पता चलता है , की यह एक असतत स्रोत से आरंभ नही होता .गैर बिंदु स्रोत प्रदूषण एक छोटी मात्रा में संदूषक के प्रभाव से एकत्र हुए एक बड़े क्षेत्र से होता है गैर बिंदु प्रदूषण स्रोत के उदाहरण यह हैं की पोषक अपवाह तूफ़ानजल प्रवाह से ऊपर एक पत्र से कृषि क्षेत्र मैं आ जाते हैं या धातुओं और हाइड्रोकार्बन एक उच्च अभेद्य क्षेत्र के साथ एक प्राथमिक कानून का ध्यान जल प्रदूशन को रोकने के लिये पिछले कई सालों से भिंदु क्षेत्र मैं है . बिंदु रूप प्रभावी ढंग से नियंत्रित किये गए है , अधिक ध्यान गैर बिंदु योगदान स्रोत पर दिया गया है ,विशेष रूप से नये शहर और विकास को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है

जल प्रदूषण के प्रभाव
1.समुद्रों में होने परमाणु परीक्षण से जल में नाभिकीय कण मिलते हैं जो कि समुद्री जीवों व वनस्पतियों को नष्ट करते हैं और समुद्र के पर्यावरण सन्तुलन को बिगाड़ देते हैं।
2.प्रदूषित जल पीने से मानव में हैजा, पेचिस, क्षय, उदर सम्बन्धी आदि रोग उपन्न होते हैं।
दूषित जल के साथ ही फीताकृमि, गोलाकृमि आदि मानव शरीर में पहुँचते हैं जिससे व्यक्ति रोगग्रस्त होता है।
4.जल में कारखानों से मिलने वाले अवशिष्ट पदार्थ, गर्म जल, जल स्रोत को दूषित करने के साथ-साथ वहाँ के वातावरण को भी गर्म करते हैं जिससे वहाँ की वनस्पति व जन्तुओं की संख्या कम होगी और जलीय पर्यावरण असन्तुलित हो जायेगा।
5. स्वच्छ जल जो कि सभी सजीवों को अति आवश्यक मात्रा में चाहिए, इसकी कमी हो जायेगी।
प्रमुख कारन जो जल को प्रदूषित करता हैं वो हैं रासायनिकओ , रोगजनक (pathogen),और शारीरिक या संवेदी परिवर्तन हालांकि कई रसायन और तत्व जो कि स्वाभाविक रूप ( लोहा , मैंगनीज , आदि ) से होते है ,एकाग्रता की कुंजी का पता लगाने के लिये पानी के प्राकृतिक घटक और संदूषकको देखा जाता है कई रासायनिक पदार्थवैशाली है (toxic).पथोगेंस मानव या जानवरों में जलजनित बीमारियाँ (waterborne diseases)पैदा कर सकते हैं पानी के भौतिक रसायन विज्ञान बदलाव में शामिल अम्लता , विद्युत चालकता (electrical conductivity), तापमान , और एउत्रोफिकाशन .हैं पोशिक तत्व जो पहेले (Eutrophication) दुर्लभ थे व्ही तत्व आज कल उत्रोफिकाशन (fertilisation) , फर्टिलाइजेशन द्वारा सतह (surface water)के पानी को पोशाक तत्व (nutrients)देते है (scarce) जल प्रदूषण विश्व संदर्भ में एक बड़ी समस्या हैयह सुझाव दिया गया है कि यह दुनिया भर की प्रमुख मृत्यु और बीमारियों का कारन है [१][२] और यह रोज़ १४००० से अधिक लोगों की मृत्यु का कारन बनता है

सांडपाणी शुद्धिकरण -
जिथे जिथे नागरी वस्त्या होतात सांडपाणी तयार होणे हे स्वाभाविक असते. पाण्याचा वापर मानवी जीवनास आवश्यक आहे. पाण्याच्या वापरानंतर जे पाणी अशुद्ध होउन पुनर्वापरास लायक नसते असे पाण्याला सांडपाणी असे म्हणतात. आजच्या युगात सांडपाणी हे मानवी तसेच औद्योगिक वापरातुन तयार होते. याचे दोन भागात वर्गीकरण करता येइल नागरी सांडपाणी व औद्योगिक सांडपाणी. नागरी सांडपाणी हे मुख्यत्वे नागरी वापरातुन तयार होते. उदा: मलमुत्र विसर्जनासाठि वापरण्यात येउन तयार होणारे (Sewage) . अंघोळ तसेच स्वयंपाकघरातुन तयार होणारे, कपडे व भांडि घासुन तयार होणारे सांडपाणी(sullage) .

असे सांडपाणीची विल्हेवाट लावणे हे नागरी आरोग्याच्या दृष्टिने महत्त्वाचे असते. जर हे पाणी एखाद्या जागी साठुन राहिले तर पाण्यामध्ये जीव जंतुंची प्रक्रिया होउन त्यांची संख्या वाढिस लागते. त्याच्या प्रक्रियांमुळे अनेक दुषित द्रुर्गंधि वायुंची निर्मिति होते व सार्वजनिक आरोग्य बिघडते. तसेच जर हे पाणी पिण्याच्या पाण्याच्या संपर्कात आले तर पिण्याच्या पाण्यात जंतुंचा प्रादुर्भाव होउन अनेक जीवघेणे आजार होउ शकतात.
जसे सांडपाण्यामध्ये जीवजंतुना मोठ्या प्रमाणावर पोषक द्र्व्ये असतात तसेच वनस्पती शेवाळी यांना देखील पोषक द्र्व्ये मोठ्या प्रमाणावर असतात. त्यात मुख्यत्वे फॉस्फरस व नायट्रोजन चा समावेश होतो. या तत्त्वांमुळे पाण्यामध्ये मोठ्याप्रमाणावर वनस्पतीची वाढ होते व त्याचा परिणाम म्हणून आपण जलपर्णी पाहातोच. या वनस्पती पाण्यातील जलचरांना चांगले खाद्य जरी बनत असले तरी रात्रीच्या वेळात पाण्याची ऑक्सीजन पातळि मोठ्या प्रमाणावर कमी करतात. यामुळे जलचरांचे अस्तित्व धोक्यात येते.
सांडपाणी शुद्दिकरणाचे मुख्य ध्येय मुख्यत्वे पर्यावरणाचे रक्षण आहे ज्याचा फायदा सर्वच नागरी क्षेत्रासाठि होईल.

जल प्रदूषण से बचने के उपाय
योजना क्या है

योजना के दायरे में 2100 गांव शमिल किए गए थे। पहले चरण में सरकार को 2007 तक 500 गांवों में साफ पानी उपलब्ध करवाना था। हालांकि किसी भी गांव में कोई काम शुरू नहीं किया गया है।

योजनानुसार एक एनजीओ को 20 गांवों में काम करना था। जिसके लिए सरकार उसे एक साल में 12 लाख रुपए देती। 5 फीसदी नवंबर 2006 को एनजीओ के साथ एग्रीमेंट के वक्त देना था। एनजीओ के जि?मे काम यह था कि उन्हें संबंधित गांवों का एक प्रोफाइल तैयार कर गांवों की आबादी के अनुसार पानी की खपत का हिसाब लगाकर टंकी और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगवाना था।
सांडपाणी शुद्धिकरण

जिथे जिथे नागरी वस्त्या होतात सांडपाणी तयार होणे हे स्वाभाविक असते. पाण्याचा वापर मानवी जीवनास आवश्यक आहे. पाण्याच्या वापरानंतर जे पाणी अशुद्ध होउन पुनर्वापरास लायक नसते असे पाण्याला सांडपाणी असे म्हणतात. आजच्या युगात सांडपाणी हे मानवी तसेच औद्योगिक वापरातुन तयार होते. याचे दोन भागात वर्गीकरण करता येइल नागरी सांडपाणी व औद्योगिक सांडपाणी. नागरी सांडपाणी हे मुख्यत्वे नागरी वापरातुन तयार होते. उदा: मलमुत्र विसर्जनासाठि वापरण्यात येउन तयार होणारे (Sewage) . अंघोळ तसेच स्वयंपाकघरातुन तयार होणारे, कपडे व भांडि घासुन तयार होणारे सांडपाणी(sullage) .

असे सांडपाणीची विल्हेवाट लावणे हे नागरी आरोग्याच्या दृष्टिने महत्त्वाचे असते. जर हे पाणी एखाद्या जागी साठुन राहिले तर पाण्यामध्ये जीव जंतुंची प्रक्रिया होउन त्यांची संख्या वाढिस लागते. त्याच्या प्रक्रियांमुळे अनेक दुषित द्रुर्गंधि वायुंची निर्मिति होते व सार्वजनिक आरोग्य बिघडते. तसेच जर हे पाणी पिण्याच्या पाण्याच्या संपर्कात आले तर पिण्याच्या पाण्यात जंतुंचा प्रादुर्भाव होउन अनेक जीवघेणे आजार होउ शकतात.

जसे सांडपाण्यामध्ये जीवजंतुना मोठ्या प्रमाणावर पोषक द्र्व्ये असतात तसेच वनस्पती शेवाळी यांना देखील पोषक द्र्व्ये मोठ्या प्रमाणावर असतात. त्यात मुख्यत्वे फॉस्फरस व नायट्रोजन चा समावेश होतो. या तत्त्वांमुळे पाण्यामध्ये मोठ्याप्रमाणावर वनस्पतीची वाढ होते व त्याचा परिणाम म्हणून आपण जलपर्णी पाहातोच. या वनस्पती पाण्यातील जलचरांना चांगले खाद्य जरी बनत असले तरी रात्रीच्या वेळात पाण्याची ऑक्सीजन पातळि मोठ्या प्रमाणावर कमी करतात. यामुळे जलचरांचे अस्तित्व धोक्यात येते.

सांडपाणी शुद्धिकरणामध्ये पहिलि पायरी म्हणजे प्रवाहमापन. प्रवाह किती आहे व प्रदुषण पातळि किती आहे यावर ठरते कि कोणते शुद्धिकरण तंत्रज्ञान वापरावे. प्रवाहमापन हे खरोखरीच मोजले जाते किंवा शक्य नसेल तर ठोकताळ्यांनुसार मापन केले जाते. नागरी वस्त्यांसाठि माणशी १०० लिटर प्रतिदिवस प्रवाहमानला जातो. परंतु या अंदाजात स्थानिक पाण्याचा वापर कसा आहे यावर अवलंबुन असते. पुण्याचा माणशी पाण्याचा वापर हा २०० लिटरपेक्षाहि जास्त आहे. त्याच वेळेस बार्शी व माण अश्या पाण्याचे दुर्भिक्ष्य असणार्‍या भागात तो १०० लिटरपेक्षाहि कमी आहे. म्हणून हा अंदाज हा वर्षानुवर्षे केलेल्या अभ्यासावरुन निश्चित केला जातो. तसेच नागरी वस्त्यांमध्ये घरगुती व सार्वजनिक वापरात बराच फरक असतो. तसेच औद्योगिक वापर हा पुर्णत: वेगळ्या प्रकारे होत असल्याने प्रवाहमापना साठि खालिलप्रकारे वर्गीकरण करण्यात आलेले आहे.


    १ नागरी वापर - घरगुति वापरातुन तसेच सार्वजनिक ठिकाणांवरुन आलेले. उदा: शाळा, कॉलेज, सभारंभ हॉल, रुग्णालये इत्यादि.
    २ औद्योगिक वापर - कारखाने
    ३ पावसाळि - पाउस पडल्यानंतर जे पाणी सांडपाणी वाहुन नेणार्‍या नलिकांमध्ये घुसते असे पाणी देखील प्रदुषित होते.आजकाल शहरांमध्ये बराचसा भाग हा सिमेंट कॉक्रिट, डांबर, फर्शी अश्यानी आच्छादित असतो. पावसाचे पाणी अश्या भागावर पडल्यानंतर ते जमीनीत न मुरता जवळच्या सांडपाणी वाहुन नेणार्‍या नलिकेत घुसते हे पाणी सांडपाण्यामध्ये मिसळुन पण दुषित होते तसेच रस्ते नाले यामधिल घाण बरोबर आणल्यामुळे देखील दुषित होते. या पाण्याचा प्रवाह नेहेमीच्या सांडपाण्यापेक्षा कितितरी पटिने जास्त असतो. व हे सगळे पाणी सांडपाणी शुद्धिकरण प्रकल्पात घेणे अशक्य असते. त्यासाठि या पाण्याचे नियोजन पण महत्त्वाचे आहे. असे पाणी शुद्ध करण्यापेक्षा ते थोडावेळ मोठ्या टाक्यांमध्ये साठवुन नदिच्या पात्रात हळुहळु सोडतात(Strom water tank ). अश्या पाण्याची प्रदुषणपातळि बरीच कमी झालेली असते. अश्या टाक्यांमुळे पुरावरति पण नियंत्रण मिळवता येते. भारतात अश्या प्रकारच्या टाक्यांची रचना होणे अत्यंत गरजेचे आहे जेणे करुन नद्यांचे प्रदुषण कमी होइल व पुरावर काहि प्रमाणात नियंत्रण मिळवता येइल. असे पावसाळि पाण्याचा प्रवाहमापनाचे गणित अत्यंत क्लिष्ट पद्धत आहे, ती पद्धत बहुतकरुन पुरनियंत्रक अभियंत्याकडे उपलब्ध असते.

नागरी विभाग- वर नमुद केल्या प्रमाणे साधारणपणे माणशी प्रतिदिन १०० लिटर प्रवाह असे मानतात. औद्योगिक प्रवाह - हा कोणत्या प्रकारचा उद्योग आहे त्यावर अवलंबुन असते. पाण्याचा वापर किती आहे या संबधिची माहिती त्या त्या उद्योगा कडुन गोळा केली जाते अथवा इथेहि उद्योग प्रकारा प्रमाणे ठोकताळे लावुन सांडपाण्याचा प्रवाह निश्चित केला जातो.

सांडपाणी शुद्दिकरणाचे मुख्य ध्येय मुख्यत्वे पर्यावरणाचे रक्षण आहे ज्याचा फायदा सर्वच नागरी क्षेत्रासाठि होईल.
1. कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था के साथ-साथ इन अवशिष्ट पदार्थों को निष्पादन से पूर्व दोषरहित किया जाना चाहिए। 2. नदी या अन्य किसी जल स्रोत में अवशिष्ट बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कानून कदम उठाने चाहिए।
3. कार्बनिक पदार्थों के निष्पादन से पूर्व उनका आक्सीकरण कर दिया जाए।
4. पानी में जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थ, जैसे ब्लीचिंग पाउडर आदि का प्रयोग करना चाहिए।
5. अन्तर्राष्टीय स्तर पर समुद्रों में किये जा रहे परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी चाहिए।
6 समाज व जन साधारण में जल प्रदूषण के खतरे के प्रति चेतना उत्पन्न करनी चाहिए।


मृतदेह नदीत न बुडवता १ पेलाभर पाणी अंगावर घालणे. अंत्यसंस्कारानंतर तिसऱ्या दिवशीच्या विधीच्या वेळी चिमूटभर राख नदीत टाकून उरलेली राख शेतकऱ्यांच्या शेतात टाकणे. त्यामुळे पिकाला चांगले खत मिळेल.
यासाठी मोठय़ा प्रमाणावर लोकप्रबोधनाची गरज आहे. यासाठी विविध तीर्थक्षेत्रांच्या ठिकाणी असलेल्या महाराज लोकांचा उपयोग करता येईल. जे ब्राह्मण असे
विधी करतात, त्यांचेही याबाबत प्रबोधन करणे गरजेचे आहे.
जलप्रदूषण रोखण्यासाठी गणेशमूर्ती दान करा >> म. टा. वृत्तसेवा। नाशिक शहरात उत्सवी वातावरणात आलेल्या गणरायांना निरोप देण्यासाठी सार्वजनिक मंडळांसोबतच महापालिका प्रशासनान तयारी केली असून जलप्रदूषण रोखण्यासाठी निर्माल्य संकलनासाठी महापालिकेतर्फे विसर्जन स्थळांवर 'निर्माल्य कलश' ठेवले आहेत. विघ्नर्हत्या गणेशाच्या उत्सवी आगमनाला बघता बघता दहा दिवस लोटले आहेत. अशाच उत्सवी वातावरणात गणरायांना निरोप...

उन्होंने कहा कि बदलती जीवन शैली और आदतों से जल संसाधनों पर काफी दबाव है। इसलिये पानी की बचत, उसके शोधन और संचयन को राष्ट्रीय अभियान बनाने की जरूरत है। संघ शासित प्रदेश चंडीगढ़ के वित्त सचिव संजय कुमार ने इस मामले में सामुदायिक भूमिका पर जोर देते हुये कहा कि यह विडंबना है कि पृथ्वी का दो तिहाई हिस्सा पानी से भरा है लेकिन फिर भी हमें पानी के संरक्षण और प्रबंधन पर बात करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि छोटे छोटे उपायों के जरिये जैसे जल संचयन, भूमिगत जल की रिचार्जिंग, पानी की बर्बादी को कम करके जल संरक्षण की दिशा में काफी काम हो सकता है।

केंट आरओ सिस्टम के सीएमडी महेश गुप्ता ने इस मौके पर कहा कि पानी की गुणवत्ता में सुधार लाकर कई तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि पृथ्वी का दो तिहाई हिस्सा पानी है, लेकिन इसमें से ज्यादा हिस्सा पीने लायक नही है यहां तक कि भूमिगत जल भी कई तरह के खनिज तत्वों से दूषित हो चुका है।



                    ध्वनि प्रदूषण इंसानी बिरादरी के लिए खतरा

आज की पीढ़ी और हमारी आने वाली पीढियों के लिए तीन बहुत ही बड़ी समस्याएं हैं- गरीबी, जनसंख्या वृद्धि और प्रदूषण। इनमें से प्रदूषण की समस्या ज्यादा गंभीर है। वर्तमान समय में जबकि प्रकृति और पर्यावरण से छेड़छाड़ फैशन बन चुका है, हम मानव समाज के लिए घातक ध्वनि प्रदूषण से अनजान हैं। ध्वनि प्रदूषण से तात्पर्य वातावरण में पैदा होने वाले उस असहनीय या अप्रिय शोर-शराबे से है जिसका मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण की तुलना में मानव जनित प्रदूषण हमारे लिए ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण कभी-कभी होता है। जैसे बादलों की गर्जना, बिजली चमकना, हवाओं की तेज गति आदि। वहीं हमारे द्वारा पैदा किया ध्वनि प्रदूषण रोजाना जीवन का हिस्सा बन चुका है। आज हम चाहें ना चाहें, हमारे द्वारा तैयार किए गए कल-कारखाने और मशीनें एक बड़े ध्वनि प्रदूषण के जनक हैं। भारत में आजादी के बाद जिस गति से औद्योगिकीकरण में वृद्धि हुई है, उससे ध्वनि प्रदूषण की नवीन समस्याएं भी उत्पन्न हुई हैं।

इन औद्योगिक इकाइयों में लगी विशालकाय मशीनों और निर्माण की प्रक्रिया के उप उत्पाद के रूप में भारी मात्रा में अवांछित ध्वनियां पैदा होती हैं। वह ध्वनि जो हमें कर्णप्रिय लगे वह संगीत है और जो अप्रिय लगे वह ध्वनि प्रदूषण है। ध्वनि के नापने की इकाई डेसीबल है, सामान्य संवाद के दौरान उत्पन्न ध्वनि लगभग ६० डेसीबल होती है। वहीं ८० डेसीबल से अधिक तीव्रता वाली सारी ध्वनि प्रदूषण का भाग होती है। औद्योगिक ध्वनि प्रदूषण के अतिरिक्त गैर-औद्योगिक ध्वनि प्रदूषण भी आज एक बड़ी समस्या और चुनौती बन चुका है। इस गैर-औद्योगिक ध्वनि प्रदूषण का जनक हमारा बढ़ता शहरीकरण एवं आधुनिक जीवन शैली है। जो हवाई जहाज, रेल, मोटरगाड़ी, बिजली के यंत्रों आदि के बिना नहीं चल सकती।

जरा सोचिए कि हमने अपना शहरी जीवन कैसा बना लिया है, चारों ओर बड़ी-बड़ी ऊंची इमारतें हैं जिन्हें हम कांक्रीट का जंगल कहते हैं। इन इमारतों के बीच में सडक़ें हैं जिन पर आलीशान बड़ी गाडिय़ां दौड़ती हैं। यह बड़ी और ऊंची इमारतें एक घाटी का रूप ले लेती हैं। जहां इनके बीच पैदा होने वाला ध्वनि प्रदूषण यहीं सिमट जाता है और जिसका सीधा शिकार हम बन रहे हैं। वहीं हम एक अन्य बड़ी जन सुविधा रेल की बात करें तो रेलगाड़ी के चलने-फिरने और हार्न बजाने के दौरान कुल मिलाकर लगभग १२० डेसिबल से अधिक स्तर की ध्वनियां उत्पन्न होतीं हैं जो सामान्यतरू प्रदूषण मानकों के हिसाब से ध्वनि प्रदूषण कर रही हैं। ऐसा नहीं है कि यह ध्वनि आज कहीं से अचानक पैदा हो गई हो। वास्तविकता यह है कि आवाज और इंसान की उत्पाता एक साथ है। पर धीरे-धीरे हमने अपनी आवश्यकताओं के फेर में आवाज को अपना शत्रु बना लिया है। और यह सब पिछली २०वीं शताब्दी के समय ज्यादा हुआ है।

भारत में हम किसी भी शहर की बात करें चाहे वह राजधानी दिल्ली हो या कोई अन्य महानगर सभी जगह अक्सर ही ध्वनि प्रदूषण सामान्यतरू अपने स्तर से अधिक ही होता है। यही स्थिति हमने उन जगहों पर भी बना रखी है, जहां हमें शांति बनाए रखनी चाहिए जैसे अस्पताल इत्यादि। ध्वनि प्रदूषण की इस बीमारी में आज भी एक बड़ा भाग सडक़ यातायात के संसाधनों का है। भांति-भांति के सुरों वाले प्रेशर हार्न, इंजन की आवाज को सही रूप से नियंत्रित न कर पाने वाले साइलेंसर, अनियंत्रित व अव्यवस्थित यातायात के तरीके आदि प्रमुख हैं। इन सबसे जूझने के लिए हमने कानून और नियम तो बहुत बनाए हैं, परंतु इन नियमों को मानने और पालन करने की मानसिकता का अभाव इस ध्वनि प्रदूषण की समस्या को और भयावह और खतरनाक बना रहा है। आज भी हम सही मायनों में ध्वनि प्रदूषण को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और न ही हम इसे कोई खतरा मान रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए अभिशाप है और निस्संदेह यह भी अन्य प्रदूषणों की भांति धीमे जहर के जैसा है। यह इतना घातक है कि यह सजीव एवं निर्जीव दोनों के लिए घातक है।

प्राचीन एवं ऐतिहासिक इमारतों एवं भवनों को इस ध्वनि प्रदूषण से बचाए जाने के प्रयास विर्श्व भर में हो रहे हैं। इनमें मुख्यतरू विमानों द्वारा उत्पन्न उच्च ध्वनि इमारतों के लिए घातक है। वहीं इंसानों में सुनने की शक्ति में कमी, नींद में बाधा, एकाग्रता में कमी, शरीर तंत्र पर प्रभाव, आचार-व्यवहार में परिवर्तन आदि जैसे अनेक समस्याएं इस बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण इंसानी बिरादरी को कष्ट दे रही हैं। वहीं पशु-पक्षी एवं वनस्पति भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं हैं। जहां वनस्पति में क्रमोन्नत वृद्धि में कमी आंकी गयी है, वहीं पक्षियों में तेज ध्वनि प्रदूषण से उनकी प्रजनन प्रक्रिया बाधित हो रही है। अभी समय है कि हम यह नियंत्रित और निर्धारित कर लें कि हमें कितना और कैसा सुनना है? वरना आधुनिकता की यह दौड़ इस ध्वनि को हमारा दुश्मन बना रही है।



                                वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण रसायनों,सुक्ष्म पदार्थ (particulate matter), या जैविक पदार्थ (biological material) के वातावरण (atmosphere) में, मानव की भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है.[१] वायु प्रदूषण के कारण मौतें[२] और श्वांस रोग (respiratory disease).[३] वायु प्रदुषण की पहचान ज्यादातर प्रमुख स्थायी स्त्रोतों (major stationary source) से की जाती है, पर उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्त्रोत (source of emissions) मोबाइल, ऑटोमोबाइल्स (automobile) है.[४]कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए सहायक है, को हाल ही में प्राप्त मान्यता के रूप में मौसम वैज्ञानिक प्रदूषक के रूप में जानते हैं, जबकि वे जानते हैं, कि कार्बन डाइऑक्साइड प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पेड़-पौधों को जीवन प्रदान करता है.

यह वातावरण एक जटिल, गतिशील प्राकृतिक वायु तंत्र है जो पृथ्वी गृह पर जीवन के लिए आवश्यक है वायु प्रदुषण (Stratospheric) के कारण समतापमंडल से हुए ओज़ोन रिक्तीकरण (ozone depletion) को बहुत पहले से मानव स्वास्थ्य के साथ साथ पृथ्वी के पारस्थिकी तंत्र (ecosystems) के लिए खतरे के रूप में पहचाना गया है/
वायु प्रदुषण के स्त्रोत विभिन्न स्थान, गतिविधि या घटक सूचित करते हैं जो वातावरण में प्रदूषकों को मुक्त करने के लिए जिम्मेदार है.इन स्त्रोतों को दो प्रमुख श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है जो हैं:
विभिन्न प्रकार के इंधन के दहन से सम्बद्ध मानवजनित स्त्रोत (मानव गतिविधि ) (fuel)
बिजली सयंत्रों (power plant) की चिमनियाँ , सुविधाएँ निर्माण करना, नगर निगम के कचरे की भट्टी जैसे स्थिर स्र्त्रोत.
    मोटर गाड़ी, हवाई जहाज (motor vehicles)जैसे गतिशील स्त्रोत.
    समुद्री जहाजो जैसे मालवाहक जहाजो (container ships)या क्रुज जहाजो (cruise ships)से और सम्बन्धित बंदरगाह (port)से होने वाला वायु प्रदुषण.
    जलाऊ लकड़ी (wood), आग लगाने के स्थान (fireplaces), चूल्हा (stove), भट्ठी (furnace)और भस्मक (incinerator).
    सामान्य तेल शोधन (Oil refining)तथा औद्योगिक गतिविधि
    कृषि और वानिकी प्रबंधन (controlled burn) में रसायन, धूल उड़ने और नियंत्रित दहन की पद्धतियां , (देखें धूल बाउल (Dust Bowl) ).
    पेंट, बालों के स्प्रे (paint), वार्निश (hair spray), एरोसोल स्प्रे (varnish) और अन्य विलायकों (aerosol spray) से निकलने वाला धुआ.
    लैंड फील में जमा अपशिष्ट (landfill) जो मीथेन उत्पन्न करता है (methane).
    सेना, जैसे परमाणु हथियार (nuclear weapon), विषाक्त गैस (toxic gas), कीटाणु युद्ध सामाग्री (germ warfare) और रॉकेटरी (rocket)I

प्राकृतिक स्रोत
    प्राकृतिक (Dust) स्त्रोतों से धुल, आमतौर पर ज्यादा भूमि और कम या बिल्कुल भी वनस्पति वाली भूमि या बंजर भूमि से उड़ने वाली धूल
    पशुओं (Methane)द्वारा भोजन (emitted)के पाचन (digestion)के कारण (animal)उत्सर्जित मीथेन, उदाहरण के लिए दुधारू पशु (cattle)
    पृथ्वी की पपडी नष्ट होने से रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न रेडॉन गैस
    जंगल (Smoke)की आग से (carbon monoxide)उत्पन्न धुआँ और कार्बन मोनोऑक्साइड (wildfires).
    ज्वालामुखीय गतिविधि जिससे सल्फर , क्लोरीन और सुक्ष्म राख उत्पन्न होती (particulate)है.
उत्सर्जन के घटक
वायु प्रदूषक उत्सर्जन घटक वे प्रतिनिधिक मान हैं जो उस प्रदूषक के उत्सर्जन से सम्बंधित गतिविधि द्वारा व्यापक वायु में उत्सर्जित प्रदूषकों की मात्रा बताती है. इन घटकों को आमतौर पर प्रदूषकों के वजन मान, परिणाम, दूरी या प्रदूषक के उत्सर्जन गतिविधि की अवधि की एक इकाई से विभाजित कर व्यक्त किया जाता है ( जैसे जले हुए प्रति मेगाग्राम कोयले से उत्सर्जित सुक्ष्म उत्सर्जन).इस प्रकार के घटक वायु प्रदूषण के विभिन्न स्त्रोतों से उत्सर्जित उत्सर्जन का अनुमान लगाने में सुविधा प्रदान करते हैं. अधिकतर मामले में, ये घटक स्वीकार्य गुणवत्ता के उपलब्ध आंकडों के औसत है, और आमतौर पर दीर्घ अवधि औसत माने जाते है.

संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण सुरक्षा पर्यावरण एजेंसी (United States Environmental Protection Agency)ने औद्योगिक स्रोत के लिए वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन घटकों का एक संकलन प्रकाशित किया है[५]. यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी की तरह यूनाइटेड किंगडम , ऑस्ट्रेलिया , कनाडा और अन्य देशों ने भी इस तरह के संकलन प्रकाशित किए हैं/

स्वास्थ्य प्रभाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल २-४ लाख लोगों की मौत का कारण सीधे सीधे वायु प्रदूषण है जबकि इनमे से १-५ लाख लोग आतंरिक वायु प्रदूषण से मारे जाते हैं (indoor air pollution).[३]बर्मिंघम विश्वविद्यालय (University of Birmingham) का एक अध्ययन दिखाता है कि निमोनिया (pneumonia) से होने वाली मौतें और मोटर गाड़ी से होने वाले वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में पक्का सम्बन्ध है. [११] दुनिया भर में हर साल मोटर गाड़ी (automobile)से होने वाली मौतों की तुलना में वायु प्रदुषण से होने वाली मौतें अधिक है. २००५ में प्रकाशित यह बताता है की हर साल ३१०,००० यूरोपियन वायु प्रदुषण से मर जाते हैं. वायु प्रदुषण के प्रत्यक्ष कारण से जुड़ी मौतों में शामिल है अस्थमा (asthma), ब्रोन्काइटिस (bronchitis), वातस्फीति (emphysema), फेफड़ों और हृदय रोग, और सांस की एलर्जी.US EPA (US EPA)का आंकलन है की डीजल इंजिन की तकनीक में (एक प्रस्तावित परिवर्तन) अमेरिका में हर साल १२,००० असमय मौतों, १५,००० असमय हदय आघात, अस्थमा से पीड़ित ६,००० (heart attack)बच्चों की असमय पीडा (emergency room), ८९०० श्वास रोग से पीड़ित लोगों को (asthma)दवाखाने में भरती होने से रोक सकता है.

भारत में सबसे भयंकर नागरिक प्रदुषण आपदा १९८४ में भोपाल आपदा थी (Bhopal Disaster). [१२]संयुक्त राज्य अमरीका की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री कारखाने से रिसने वाली औद्योगिक वाष्प से २००० से अधिक लोग मारे गए और १५०,००० से ६००,००० दुसरे लोग घायल हो गए जिनमे से ६,००० लोग बाद में मारे गए. इंग्लॅण्ड को अपना सबसे बुरा नुकसान जब हुआ तब ४ दिसम्बर १९५२ (Great Smog of 1952)को लन्दन में भारी धुंध की घटना हुई. छ : दिन में ४००० से अधिक लोग मारे गए, और बाद के महीनों के भीतर८००० और लोगों की मृत्यु हो गई. १९७९ में पूर्व सोवियत संघ में स्वर्डर्लोव्स्क (anthrax)के पास एक (biological warfare)जैविक युद्ध कारखाने से अन्थ्राक्स (USSR)के रिसाव से यह (Sverdlovsk)माना जाता है को सेकडों लोगों की मृत्यु हो गयी. अमेरिका में वायु प्रदुषण की सबसे भीषण घटना डोनोरा , पेनसिल्वेनिया (Donora, Pennsylvania)में १९४८ के अक्टूबर के अन्तिम दिनों में हुई जिसमे २० लोग मरे गए और ७,००० लोग घायल हो गए[१३].

वायु प्रदुषण से होने वाले स्वस्थ्य प्रभाव जैविक रसायन और शारीरिक परिवर्तन से लेकर श्वास में परेशानी, घरघराहट, खांसी और विद्यमान श्वास तथा ह्रदय की परेशानी हो सकती है. ं इन प्रभावों का परिणाम दवाओं के उपयोग में वृद्धि होती है, चिकित्सक के पास या आपातकालीन कक्ष में ज्यादा जाना, ज्यादा अस्पताल में भरती होना और असामयिक मृत्यु के रूप में आता है.वायु की ख़राब गुणवत्ता के प्रभाव दूरगामी है परन्तु यह सैधांतिक रूप से शरीर की श्वास प्रणाली और ह्रदय व्यवस्था को प्रभावित करता है. वायु प्रदुषण की व्यक्तिगत प्रतिक्रिया उस प्रदूषक पर, उसकी मात्रा पर, व्यक्ति के स्वास्थय की स्थिति और अनुवांशिकी पर निर्भर करती है जिससे वह व्यक्ति संपर्क में रहता है./

बच्चों पर प्रभाव
दुनिया भर के अत्यधिक वायु प्रदुषण वाले शहरों में ऐसी संभावना है कि उनमे रहने वाले बच्चों में कम जन्म दर के अतिरिक्त अस्थमा (asthma), निमोनिया (pneumonia) और दूसरी श्वास सम्बन्धी परेशानियाँ विकसित हो सकती है. युवाओं के स्वास्थ्य के प्रति सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने के लिए नई दिल्ली, भारत (New Delhi, India) जैसे शहरों में बसें अब मटर का सूप कोहरे को दूर करने के लिए संपीडित प्राकृतिक गैस का उपयोग प्रारंभ किया गया है.[१९]विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किए गए अनुसंधान बताते हैं की कम आर्थिक संसाधन वाले देशों में जहाँ सूक्ष्म तत्वों की मात्रा बहुत ज्यादा है, बहुत ज्यादा गरीबी है और जनसँख्या की उच्च दर है. इन देशों के उदाहरण में शामिल हैं मिस्र, सूडान, मंगोलिया, और इंडोनेशिया.स्वच्छ वायु अधिनियम (Clean Air Act) १९७० में पारित किया गया था , लेकिन २००२ में कम से कम १४६ मिलियन अमेरिकी ऐसे क्षेत्रों में रहते थे जो १९९७ के राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों में से एक "प्रदूषक मानदंड" को भी पूरा नहीं करते थे.[२०] उन प्रदूषकों में शामिल हैं, ओज़ोन, सुक्ष्म तत्व, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, और सीसा क्योंकि बच्चे ज्यादातर समय बाहर गुजारते हैं इसलिए वे वायु प्रदुषण के खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील है.
पर्यावरणीय प्रभाव
ग्रीनहाउस प्रभाव एक घटना है जिससे ग्रीनहाउस गैस (greenhouse gas) ऊपरी वातावरण (atmosphere) पर एक स्थिति का निर्माण करता है जिससे ताप को बढ़ा कर क्षोभमण्डल (tropospheric) ताप को कम कर सकता है यह इस गुन के साथ अन्य गैसों{ (other gases) सबसे बड़ा समग्र बाध्य (forcing) पृथ्वी पर से आने वाले जल वाष्प (water vapour) से साझा करता है अन्य ग्रीन हाउस गैसों में शामिल हैं मीथेन (methane), हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन (hydrofluorocarbon), परफ़्लोरोकार्बन (perfluorocarbon),क्लोरोफ़्लोरोकार्बन (chlorofluorocarbon), NOx (NOx), और ओज़ोन. बहुत से ग्रीन हाउस गैसों , जिनमें कार्बन, और उस से कुछ जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) शामिल है

यह प्रभाव वैज्ञानिकों के लिए एक सदी से पता है और इस अवधि के दौरान प्रौद्योगिकी में विस्तार और गहराई से संबंधित आंकड़ों को बढ़ाने में मदद मिली है वर्तमान में, वैज्ञानिक ग्रीन हाउस गैसों से प्राकृतिक स्रोतों के लिए एन्थ्रोपोजेनिक प्रभाव और जलवायु परिवर्तन (climate change) का अध्ययन कर रहे हैं

कई अध्ययनों द्वारा पर्यावरणीय कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पन्न होने वाले दीर्घगामी स्तरों की संभावना की भी जाँच की गई है जो समुद्री जल की अम्लीयता में अल्प वृद्धि (increases in the acidity of ocean waters) और समुद्रीय पर्यावरण प्रणाली के संभावित प्रभावों का कारण होते हैं.यद्दपि कार्बोनिक एसिड (carbonic acid)एक बहुत ही कमजोर अम्ल है और इसका इस्तेमाल प्रकाश संश्लेषण के दौरान जीवधारी द्वारा किया जाता है

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