Wikipedia

Search results

Friday 22 February 2013

स्वाभिमान और अहंकार - Selfrespect & Ego


स्वाभिमान का बहुत बड़ा फलक है। अभिमान तो बाद की बात है। प्रथम तो ‘स्व’ क्या है? हम मनुष्य हैं। यह हमारी पहचान है। हमारा स्व है। एक शरीर और एक मन है। यह हमारा स्व है। हम किसी के वंशज हैं। हमारा वंश हममें समाहित है। हमारा वह स्व है। हम भारतीय हैं। भारतीयता हमारा स्व है। हम मनुष्य हैं। मानवीयता हमारा स्व है। स्व के और भी आयाम हैं। वे सब जिनमें हमारा ‘स्व’ पहचाना जाता है। और इन सब के कारण हमारा ‘स्व’ है तो इसपर अभिमान होन का अर्थ है कि हमारी चेतना में वे सब समाए हैं, जिनसे हमारा ‘स्व’ भाव बना है। व्यक्ित के इस अभिमान पर किसी को ऐतराज नहीं होता। हमारे इस स्व के एहसास स कोई आहत नहीं होता। हम अपने इस अभिमान से किसी को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाना चाहते। वरन अपने स्व की सुगंध से स्वयं आनंदित हैं। यह अभिमान भी हमारे उसी आनंद का प्रगटीकरण है। परंतु उसी आनंद का एक रूप अहंकार भी है। जैसे अंधेरे में हाथ को हाथ नहीं सूझता। आइना सामने रहते हुए भी अपना प्रतिविंब नहीं दिखता। उसी प्रकार अहंकार के आने पर ‘स्व’ की पहचान कराने वाली स्थितियाँ नहीं दिखतीं। आत्मप्रवंचना, आत्मप्रशंसा दिखता है। ‘मैं’ का आतंक है। स्व का अस्तित्व नहीं। यह ‘मैं’ हमें औरों से दूर करता है। अहंकार में आनंद का नहीं, प्रहार का भाव है। मानसिक प्रहार। अपन को ऊँचा उठाकर दूसरों को नीचा कर दिखाना। स्वाभिमान मनुष्य को दूसरों से जोड़ता है। स्वाभिमानी मनुष्य दूसरों के आदर और स्नेह का पात्र होता है। उनका प्ररक भी बनता है। अहंकारी मनुष्य से सभी कतराते हैं। उनमें अन्यान्य गुणों के रहते हुए उन्हें उसे आदर नहीं देते। स्वाभिमान और अहंकार एक ही मनुष्य में विद्यमान हो सकता है। जिन गुणों का अभिमान उसे प्रतिष्ठा दिलाता है, उन्हीं शक्ितयों का अहंकार उसे निंदा दिलाता है। दूसरों से दूर कराता है। स्वाभिमानी मनुष्य के साथ घनेरों लोग रहते हैं। अहंकारी अकेला हो जाता है।

भारत स्वाभिमान की देशभर में अलख जगाने निकले योग गुरू स्वामी रामदेव ने कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य भारत को भष्टाचार मुक्त बनाने के साथ राष्ट्र को आध्यात्मिक दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान दिलाना है। वे जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहेंगे। वे गुरूवार को हल्दीघाटी स्थित महाराणा प्रताप संग्रहालय में आयोजित सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के बारे में कहा कि देश के स्वाभिमान वीर प्रताप ने मातृभूमि के सम्मान तथा स्वाभिमान के लिए जीवन समर्पित कर राष्ट्रप्रेम की ऎसी अलख जगाई जो भारतीयों के दिलों में अब तक जल रही है। देश के नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राष्ट्र के सम्मान तथा स्वाभिमान के लिए सदैव तत्पर रहें। उनके संबोधन पर महाराणा प्रताप की पूरी छाया रही। योग के बारे में स्वामी रामदेव ने कहा कि योग के बिना जीवन का कोई औचित्य नहीं है। विश्व भर में शीघ्र ही साढे छह करोड से अधिक लोग योग को अपना चुके होंगे। भ्रष्टाचार पर तीखे प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 के चुनाव में वही व्यक्ति देश की कमान संभालेगा जो देश में भ्रष्टाचार को मिटाने के साथ राज्यवाद, भाषावाद, जातिवाद तथा परिवारवाद से ऊपर उठकर राष्ट्रहित की बात करेगा। राष्ट्र निर्माण में स्वयं के योगदान के बारे में उन्होंने कहा कि वे ऎसे राष्ट्र के निर्माण की परिकल्पना में लगे हैं जिसमें सभी को समान दर्जा मिले। संग्रहालय आगमन पर संस्थापक मोहनलाल श्रीमाली एवं उनके परिजनों ने मेवाडी पगडी पहना, भाला भेंटकर उनका सम्मान किया।

1 comment: